Geeta: Get immersed to Know Arjun’s Karma.गीता उपदेश में अर्जुन का कर्म क्या है?
जय श्री कृष्ण जय भगवत गीता
अपने पिछले आर्टिकल में हमने कर्मों के विषय में चर्चा की और यह जाने की कोशिश की कि कर्म और भागवत गीता कैसे एक दूसरे से संबंधित है , कैसे कर्मों के विषय में भागवत गीता में बताया गया है और कर्म है क्या, कर्म क्या होते हैंl भागवत गीता के अनुसार कर्म क्या है सुकर्म और सुकर्म क्या हैl केवल कर्म करना और करते रहना ही कर्म नहीं हैl
कर्म कुकर्म और सूकर्म की श्रेणी भी बताता है लेकिन जब पिछले आरेख में हमने उसका अंत किया था तो मैंने आपसे एक प्रश्न पूछा था भगवत गीता एक ऐसा, एक ऐसा संग्रह है जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कार्य करते रहने ,कर्म करते रहने का उपदेश दिया था मेरा एक प्रश्न था आप सभी के लिए जिससे मैंने अपने पिछले आर्टिकल का अंत किया था और वह यह था कि भगवान श्री कृष्णा जो उपदेश अर्जुन को देते हैं उसमें अर्जुन का कर्म क्या है तो आज का हमारा विषय यही है कि कृष्ण गीता उपदेश में अर्जुन का कर्म क्या है?
कृष्ण गीता उपदेश में अर्जुन का कर्म क्या है?
अर्जुन के कर्म के विषय में ही आज हम इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे lकर्म क्या है यह तो हम सभी जान चुके हैं लेकिन अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने कर्म का उपदेश दिया क्यों था . कर्म बहुत ही उपयोगी एक ऐसा मोती है, एक ऐसा आभूषण है जिसको यदि हमेशा हम पहने रहे तो हम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ,जो लक्ष्य हम केवल साधते और या फिर अपने खुद के दिमाग में रखके ही रखते हैंl
कृष्णा अर्जुन उपदेश – कर्म
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भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे थे उसका सबसे पहले एक बिंदु से आरंभ हुआ था कि अर्जुन ने कर्म करना बंद कर दिया था इसलिए जैसे कि हमने विषय पर चर्चा की थी कि कर्म क्या होता है ,कर्म वह होता है जो हमें करते रहना है जिसके लिए हम बने हैं, एक ऐसा कार्य जिससे किसी को कभी किसी प्रकार की परेशानी ना हो हमारी वजह से किसी को परेशानी न हो l
गीता के उपदेश में जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे थे भगवान इसीलिए उपदेश दे रहे थे क्योंकि अर्जुन ने अपना काम करना ,अपना कार्य करना ,अपना कर्म करना बंद कर दिया था l जब अर्जुन महाभारत के युद्ध में ,कुरुक्षेत्र की रणभूमि में खड़ा हुआ था उसे समय वह अर्जुन नहीं था क्योंकि अर्जुन वह था जिसके बहुत सारे परिवार वाले थे, उसके बहुत सारे उत्तरदायित्व थे इसके बहुत सारे ऐसे कार्य थे जिसको उसे करना था किंतु गीता का उपदेश हमें यह सिखाता है कि हम अपने जीवन में बहुत सारे पात्रों को लेकर आते हैं बहुत सारे पात्र हम निभाते हैं l
जीवन के पात्र
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अपने जीवन में lवह पात्र कौन-कौन से हो सकते हैं ,वह पात्र कोई भी हो सकता है वह पात्र हो सकता है एक मां का , वह पात्र हो सकता है एक पिता का और वह पात्र हो सकता है एक पुत्र का या फिर एक पुत्री का l हम सब के पात्र हैं ,अब इन पत्रों में जब एक पुत्री अपना एक पात्र निभा रही होती है तो वह एक पुत्री होती है उसे समय वह माता नहीं हो सकती l
और इसी प्रकार अगर एक माता और पुत्री के बीच उनके कोई वार्तालाप होता है तो वह एक माता होती है वह पुत्री नहीं होती तो उनका एक अलग-अलग पात्र है इसी प्रकार जब गीता का उपदेश दे रहे थे , श्री कृष्ण उसमें अर्जुन को यही बता रहे थे कि अर्जुन जब रणभूमि में खड़ा हुआ था तो वह अर्जुन नहीं था lअर्जुन का केवल शरीर खड़ा हुआ था किंतु वह एक अंदर से वह एक ऐसा मनुष्य था जिसको पूरे समाज ने जिनको खुद के रिश्तेदारों ने जिनको खुद के परिवार वालों ने एकदम चकनाचूर कर दिया था l वह भीषण आग जो उसके खुद के परिवार वालों ने दी थी l
अधिकार और सम्मान
अर्जुन के अधिकारों का हनन किया गया lउसका अधिकार क्या था वह एक ऐसे कुल में पैदा हुआ था ,जन्म लिया था जहां उसकी वह बहुत सारे अधिकार लेकर पैदा हुआl उसको अधिकार नहीं दिए गए और न ही उसके भाइयों को दिए गए और न हीं उसकी माता को मिला और न हीं उसके पिता को मिला और यही श्रेणी चलती रही और श्रेणी में उसके पुत्र भी गए और उसके बाद ना ही उसकी पत्नी को वह अधिकार मिला और अधिकार तो मिला नहीं किंतु उसकी पत्नी का का जो अपमान किया गया वह हमें यह सिखाता है आत्म सम्मान की रक्षा कैसे होती है l
अपने सम्मान की रक्षा क्यों करनी चाहिए और आत्म सम्मान होता क्या हैl महाभारत की रणभूमि में अर्जुन केवल एक पात्र था जिसमें वह अर्जुन नहीं था जिसमें वह एक ऐसा पात्र निभा रहा था जिसमें वह एक ऐसा मनुष्य था जिसको उसके अधिकारों से वंचित किया गया और वंचित किया ही गया l
अर्जुन- मानवता का अस्तित्व
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जब अर्जुन ने अपना कार्य करने से मना कर दिया तो भगवान श्री कृष्ण उसको उसका अधिकार याद दिलाया l भगवान श्री कृष्ण उसको याद दिलाते हैं कि वह इस समय अर्जुन नहीं है वह इस समय खड़ा हुआ है पूरी मानवता को एक सन्देश देने के लिए lवह सन्देश था कि कर्म करना है l
यदि आपका कोई अधिकार छीन रहा है तो आपको उन अधिकारों को छीनने नहीं देना है यदि आपको आपसे कोई आपका सम्मान छीन रहा है उसको चकनाचूर कर रहा है तो आपको उसको नहीं होने देना और सबसे दुखद की बात यह है कि कभी-कभी वह आत्मसम्मान को कुचलना वाले वह अधिकार को छीनने वाले कोई बाहर के लोग नहीं वह अपने खुद के घर के लग ही होते हैं l
वह अपने खुद के रिश्तेदार होते हैं और सबसे बड़ी परेशान है सबसे भीषण दुख हमारे जीवन का तभी आ जाता है जब हमारे खुद के रिश्तेदार जब हमारे खुद के परिवार वाले ही हमारे आत्म सम्मान को चकनाचूर करते हैं या फिर हमारे अधिकारों को छीन लेते हैं l
कर्म में हिंसा
अर्जुन के साथ भी वही हुआ था l आपका उत्तरदायित्व बनता है कि आप उस समय खड़े हो जाइए और अपना कम करें लेकिन उसे कर्म में कहीं हिंसा नहीं होती lउस कर्म में अपने अधिकार को लेना होता है ,आत्म सम्मान की रक्षा करनी होती है l
कर्म न करना पाप का भागीदार बनाता है
श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे थे अपने शस्त्र उठाने का और अपने कर्म को करने का, उस समय श्री कृष्ण अर्जुन को नहीं कह रहे थे बल्कि श्री कृष्णा पूरी मानवता कोई संदेश देना चाहते थे कि यदि आपका कोई अधिकार छीन रहा है और अधिकार को छीन रहा है और अगर आप चुप बैठे हुए हैं तो आप भी उस पाप में भागीदारी है l
उस समय श्री कृष्णा अर्जुन को यह उपदेश दे रहे थे कि तुम एक ऐसे मानव हो जिसका आत्म सम्मान को कुचला गया है और यदि कोई व्यक्ति कोई मानव अपने आत्म सम्मान को कुचलता देखता रहता है तो वह उसके लिए उतना ही भागिदार होता है जो कि वह इंसान जो उसके आत्म सम्मान को कुचल रहा है lभगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश नहीं दे रहे थे भगवान श्री कृष्णा पूरी मानवता को उपदेश दे रहे थे l
श्री कृष्ण का मानवता को उपदेश
श्री कृष्ण अर्जुन के माध्यम से यही हम सभी मानवों को हम सभी मनुष्य को यही उपदेश देते हैं कि कार्यरत रहो कर्म करते रहो वह कर्म क्या है वह कार्य क्या है यह हमें खुद से ही आना होगा वह हमें खुद से ही समझना होगा कि वह कर्म क्या है जिसमें अहिंसा नहीं है वह कर्म कौन सा है जिसमें हम किसी को बिना कोई चोट पहुंचा अपने आत्म सम्मान की रक्षा कर सके और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेl
जो व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा नहीं करता, जो वह व्यक्ति अपने आत्म सम्मान के रक्षा नहीं कर सकता वह कभी जीवन में आगे नहीं चल सकता, वह कभी जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि वह व्यक्ति वही है जिसने खुद अपने खुद के आत्मसम्मान को कुचला है, वह व्यक्ति वही है जिसने अपने खुद के अधिकारों को जाने दिया है l
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि हमारा यह आर्टिकल कहीं ना कहीं इस कोशिश में सफल रहा होगा कि हमने यह जाना होगा कि श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को उपदेश जो दिया था उसमें कम का उपदेश क्यों दिया था l अहिंसा ना करें ,अपने अधिकारों का सम्मान करें और अपने सम्मान को रक्षा करेंl
जय श्री कृष्ण जय भगवत गीता