Geeta Saar: गीता सार To Smash your Anxiety केवल 25 उपदेशों में
गीता के गीता का सार सरल और सीमित शब्दों में २५ उपदेशों के साथ
भागवत गीता का पूरा सार (सरल शब्दों में) २५ उपदेशों के साथ
भागवत गीता का पहला उपदेश
अपनेपन की चाह हमारे जीवन की सभी कठिनाइयां और मुश्किलें हमारे मैं में जन्म लेने वाली भावना करती है ,जो हमें इस बात को मानने के लिए कहती है की सब कुछ मेरा है l यदि आप किसी व्यक्ति या वास्तु को अपने जीवन का उद्देश्य मान लेते हैं, सभी परेशानियां वहीँ से ही आरम्भ होने लगती हैं l हम अपना अस्तित्व भूल जाते हैं और किसी और ही दिशा में जीवन को मोड़ लेते हैं l
भागवत गीता का दूसरा उपदेश
आपने जैसे कर्म किये हैं , आपको वैसा ही जीवन मिलेगा. यदि कर्म अच्छे हैं तो जीवन की राह सरल हो जाती है किन्तु कठिन जीवन हमारे खुद के ही बोए हुए बीजों का वृक्ष होता है. कर्म अच्छे करें ताकि एक अच्छे जीवन का निर्माण हो सके.
भागवत गीता का तीसरा उपदेश
केवल आज में जीयो. जो व्यक्ति बीते हुए कल और आने वाले कल के जाल में जाता है वहीँ फँस कर रह जाता है . वर्तमानं की सोचो और कर्म करो.
भागवत गीता का चौथा उपदेश
गीता का चौथा उपदेश है कि यदि कोई आप पर दुष्टता दिखाए या आपको तंग करे तो उसका सामना अवश्य करें. और यदि आप चुप रहकर सब सहते जाएंगे तो पाप के भागीदार आप भी होंगे.
भागवत गीता का पांचवा उपदेश
गीता का पांचवा उपदेश है
किसी से सीमा से अधिक मोह न रखें. यह प्रमाणित है आप जिस से आवश्यकता से अधिक मोह रखेंगे वो आपको ज़रूर रुलाएगा.
भागवत गीता का छठा उपदेश
गीता के छठा उपदेश है कि आप वो करें जो आप के लिए सही है नो कि वो जो सभी कर रहे हैं एंड आप भी उस के दौड़ में आ जाएं यदि कोई पाप करे तो आप भी पाप करें , यहाँ तो पाप के सीधी सीढ़ी बनाने के सामान है.
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भागवत गीता का सातवा उपदेश
गीता का सातवा उपदेश है कि अपनों से भी सावधान रहे. आपको धोखा उन्ही से मिलता है जिसको आप के बारे में पता हो और वो आके अपने आपके घर में ही होते हैं.
भागवत गीता का आठवां उपदेश
गीता का आठवां उपदेश कर्म करते रहिये. उसे रोके नहीं. यदि अपनी रक्षा भी करनी है तो प्रयास तो करें. सब कुछ ईश्वर कि करते हैं किन्तु हमारे प्रयासों को देखकर ही.
भागवत गीता का नौंवा उपदेश
गीता का नौंवा उपदेश है कि बुरी आदते छोड़ दे. इससे पहले कि गन्दी आदते हमे खा जाएँ बुरी आदतों को छोड़ दें. एक पास कि बुरी आदत ने ही महाभारत के युद्ध कि नींव रखी .
भागवत गीता का दसवां उपदेश
गीता कि दसवां उपदेश है कि परिणाम के लिए प्रयास करो. यदि आपने अपने लिए एक कठिन सपना देखा है तो उस कठिन सपने कि लौ कठिन परिश्रम से ही प्रज्वलित कि जा सकती है.
भागवत गीता का ग्यारवां उपदेश
गीता का ग्यारवां उपदेश है कि जो आपका है वो आपको मिल कर ही रहता है. और जो नै मिलती सोच लीजिये कि वो आपकी थी ही नहीं.
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भागवत गीता का बारवां उपदेश
गीता का बारवां उपदेश है कि जो व्यक्ति अपने जीवन के मकान को क्रोध पर खड़ा करता है. उसके घर रुपी जीवन में समृद्धि एंड शान्ति जैसे स्तम्भ कभी स्तापित नहीं हो पाते.
गीता का तेहरवां उपदेश है
जिस व्यक्ति ने अपनी इच्छाओं का वश में किया है वह समय पर भी विजय पा सकता है.
गीता का चौदहवां उपदेश है
बुरा समय तभी आता है जब व्यक्ति ये स्वीकार कर लेता है ये बुरा समय है
भागवत गीता का पन्द्रवान उपदेश
गीता का पन्द्रवान उपदेश है कभी किसी का मैं न दुखाएं क्योंकि यदि आप किसी का दिल दुखाते है तो याद रहे आप का भी मैं ऐसे ही टाडा जाएगा.
गीता का सोलवां उपदेश है
जो आपके मुश्किन समय में आपके साथ खड़ा हो जाए केवल वही अपना होता है.
गीता का सत्रवान उपदेश है
जो हुआ है वो अच्छे के लिए हुआ है , जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है और जो होगा वो अचे के लिए ही होगा.
गीता का अट्ठारहवाँ उपदेश है
काम को कुशलता से करने से ही काम के असली उद्देश्य कि प्राप्ति होती है.
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गीता का उन्नीसवां उपदेश है
किसी भी चीज़ कि अति कभी न करें. किसी से प्यार या नफरत कभी अति से न करें .
गीता का बीसवां उपदेश है
जिसे आप सबसे महत्वपूर्ण समझेंगे वो कभी आपको महत्त्व नहीं देगा.
गीता का इक्कीसवाँ उपदेश है
किसी पर भी आँख मूँद कर विश्वास न करें. पांडवों ने भी कौरवो पर आरम्भ में ये ही समझ कर उदारता दिखाई कि वो अपने हैं और पूरा विश्वास दिखाया और बदले में कौरवों ने कितनी बार उन्हें मारने के प्रयास किये और चौसर का खेल भी इसी का ही उदाहरण है.
गीता का बाईसवां उपदेश है
जिसके पास सत्य कि शक्ति है और ईश्वर का आशीर्वाद है देर या सावेर विजय उसी कि ही होती है.
गीता का तेहिसवां उपदेश है
सदैव कलह से दूर रहें किन्तु जब बात आपके आत्म सम्मान , चरित्र और अधिकार पर आजाये तो आगे बढ़ने से रुकना भी नहीं चाहिए.
गीता का चौबीसवाँ उपदेश है
यदि कोई व्यक्ति अपने बुरे समय को निकाल लेता है और बुरे समय में भी हिम्मत नहीं हारता , याद रखिये वह व्यक्ति जीवन में कुछ भी पा सकता है.
गीता का पच्चीसवां उपदेश है
कभी किसी का अधिकार नहीं छीनना . जो जिसका है उससे लेने का प्रयत्न न करना यह करनी एक भीषण महाभारत को जन्म देती है.