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Bhagwat Geeta:5 ways to Rise with meaningful Karma

Bhagwat Geeta:5 ways to Rise with meaningful Karma-क्या भागवत गीता का कार्मिक सम्बन्ध है?


भागवत गीता एक ऐसी पुस्तक है जो पुस्तकों में विशेष है और जीवन का सारा अर्थ समय हुई है. जो इसका वास्तविक अर्थ समझ गए हैं उनके लिए किसी प्रकार का कोई न समझने वाला बिंदु नहीं. किन्तु जो नहीं समझे हैं , ये एक बहुत बड़ा सोच विचार का कारण है कि क्या भगवत गीता का कार्मिक सम्बन्ध है? इस आरेख में हम यही समझने कि कोशिश करेंगे कि यहाँ कार्मिक रूप भगवत गीता से कैसे सम्बंधित है.

क्या भागवत गीता का कार्मिक सम्बन्ध है?

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आप सभी का ध्यान एकाग्रित करना चाहूंगा क्युकी यहाँ एक आरेख से अधिक एक वार्तालाप होगी. एक प्रश्न जो आज इस बातचीत में और प्रश्नो को भी उठाएगा. आप मेरे रीडर्स ही नहीं मेरे क्रिटिक भी होंगे. किन्तु आज ये तो स्पष्ट है कि दो बुद्धिजीवियों का आमना सामना अवश्य है. इस बातचीत में हार हम दोनों कि ही होगी और जीत हम दोनों ही जायेगे अंत में. किन्तु सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात तो ये है कि इस ारेक के अंत में एक प्रश्न सभी के लिए छोड़ कर जाऊँगा और अगले आरेख में उत्तर भी मांगूंगा.


चलिए अब बिना किसी समय को व्यर्थ किये आरम्भ करते हैं हमारा टॉपिक. क्या भगवत गीता का कार्मिक सम्बन्ध है?


पहले समझते हैं कर्म क्या है.

कर्म क्या है?

जो मैं अभी इस समय लिख रहा हूँ वो मेरा कर्म है. आप जो मुझे पढ़ रहे हैं वो आपका कर्म है. इस समय आपके घर में जो हाउस हेल्प काम कर रही होंगी वो उनका कर्म है. हो सकता है इस समय वो आपके किचन से कुछ बिना बताये ले भी गई हो क्या ये कर्म है? एक चोर जो घर में पैसे कि कमी के कारण चोर बन जाता है और दूसरों के घर का सामान चुराता है क्या ये कर्म है? आप कहेंगे कि नहीं. यहाँ कर्म नहीं. क्यों? क्यूंकि जब आप किसी को तंग कर रहे होते है वो कुकर्म होता है.


यदि यहाँ सच है तो क्या चील जो दुसरे पशु पक्षियों को अपना आहार बनाती है वो भी कर्म नहीं. जंगल में शेर जो दूसरों को मारता है वो भी कुकर्म करता है? नहीं.

कर्म का अर्थ

ईश्वर ने मनुष्यों को पशुओं से अलग बनाया है. शेर अगर हिरण का शिकार करते हुए भागता है तो हिरण का भी ये कर्म है कि अपनी रक्षा के लिए वो भी पूरा प्रयत्न करे. शेर का आहार दुसरे पशु ही हैं. यहाँ प्राकृतिक है. मनुष्य यदि लायक होते हुए भी उन उत्तर्दाइत्वों का निर्वाह न करे जो उसे करना चाहिए वह कर्म नहीं.

मनुष्यों को मेहनत जैसा गुण और लगन जैसा आशीर्वाद ईश्वर ने ही दिया है. तो वो उसका उपयोग क्यों नहीं करता?कर्म एक भावना है जो हमें यहाँ सीखती है कि हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचना है. कर्म नै है तो जीवन भी नहीं है. बिना कर्म के आप और मैं जीवन ही नहीं बना सकते. कर्म वो उत्साह है जो हमें आगे बढ़ना सिखाता है.

भागवत गीता का कार्मिक सम्बन्ध.

उसके अंदर के कुकर्म ने उसे राक्षस बना दियाऔर उसने अपने दोस्त को मार दिया. क्या मिला उसे? केवल कुछ पैसे? क्या ये उसका कर्म था? नहीं? बिलकुल भी नहीं भागवत गीता हमें यहीं सीखाती है कि हम अंतर को जान पाएं. गीता का उपदेश हमें कर्म करने को कहता है और साथ कर्म क्या होना चाहिए ये भी बताता है.

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गीता हमें सीखाती है हमे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. अच्छे कर्म क्या है और बुरे कर्म क्या हैं. केवल कर्म करना हमारा उद्देश्य नहीं होना चहिये बल्कि वो कर्म जो हम करने वाले हैं वो हमें किस रास्ते पर लेकर जाएगा ये भी कर्म है.

अगर आप किसी के बॉस है और आप किसी को मानसिक रूप से तंग कर रहे है तो रूक जाइए यहाँ कर्म नहीं है ये आपको केवल और केवल एक ऐसी उड़ान देगा जहां आप आनंद तो बहुत लेंगे किन्तु बहुत ऊपर ले जाकर आपको नीचे भी गिरा देगा.

हमे क्या करना है ये गीता हमें सीखती है है . मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ भगवान् श्री कृष्ण जो उपदेश अर्जुन को देते हैं उसमे अर्जुन का कर्म क्या है? कृष्ण गीता उपदेश में अर्जुन का कर्म क्या है ?

अगले आरेख में इस पर चर्चा होगी, तब तक के लिए. कर्म करते रहिये और कर्मों का सही अर्थ समझिये .

यही तो तो कथन है बोलिये जय श्री कृष्ण जय श्री भागवत गीता.

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